वेद

ऋगवेद : प्राचीनतम वेद

 

ऋग्वेद हिन्द यूरोपीय भाषाओं का सबसे प्राचीनतम और पवित्र ग्रन्थ है। इसमें अग्नि, इन्द्र, मित्र, वरुण आदि देवताओं की स्तुतियाँ संग्रहित हैं, जिनकी रचना विभिन्न गोत्रों के ऋषियों और मन्त्रसृष्टाओं ने की है। ऋग्वेद सनातन धर्म अथवा हिन्दू धर्म का स्रोत है और इसे सबसे प्राचीनतम वेद माना जाता है। ऋग्वेद के कई सूक्तों में विभिन्न वैदिक देवताओं की स्तुति करने वाले मंत्र हैं, यद्यपि ऋग्वेद में अन्य प्रकार के सूक्त भी हैं, परन्तु देवताओं की स्तुति करने वाले स्त्रोतों की प्रधानता है।

ऋग्वेद एक संहिता है जिसमे  10 मण्डल तथा 1028 सूक्त हैं और कुल 10,580 ऋचाएँ हैं। इसके 10 मण्डलों में  से कुछ मण्डल छोटे हैं और कुछ मण्डल बड़े हैं। प्रथम और अन्तिम मण्डल, दोनों ही समान रूप से बड़े हैं। उनमें सूक्तों की संख्या तक़रीबन 191 है। दूसरे मण्डल से सातवें मण्डल तक का अंश ऋग्वेद का श्रेष्ठ भाग है। आठवें मण्डल और प्रथम मण्डल के प्रारम्भिक 50 सूक्तों में समानता है।

ऋग्वेद के पाठ

ऋग्वेद के कुल तीन पाठ हैं। प्रथम पाठ साकल है, जिसमें 1017 मन्त्र हैं। द्वितीय पाठ बालखिल्य है, जिसमें 11 मन्त्रों का उल्लेख है। और तृतीय एवं अन्तिम पाठ वाष्कल है, जिसमें 56 मन्त्रों का जिक्र है।

ऋग्वेद के रचना की तिथि 

ऋग्वेद के रचना की तिथि में विद्वानों में काफी मतभेद है। जैकोबी के अनुसार इसकी रचना तिथि 3000 ई.पु. है, वहीँ तिलक के मतानुसार यह तिथि 6000 ई.पु. है। मैक्समुलर के अनुसार यह तिथि 1200-1000 ई.पु. है जबकि विन्टर नित्स के अनुसार यह तिथि 2500-2000 ई.पु. है। इन सब तिथियों के अतिरिक्त ऋग्वेद की रचना की मान्य तिथि 1500-1000 ई.पु. मानी जाती है।

ऋग्वेद के प्रमुख मण्डल व उसके रचयिता 

ऋग्वेद के 10 मण्डलों में से प्रथम का जिक्र बहुत कम ही मिलता है। द्वितीय मण्डल के रचयिता गृत्समद भार्गव थे। तृतीय मण्डल के रचयिता विश्वामित्र थे, इसमें गायत्री मन्त्र का उल्लेख किया गया है। चतुर्थ मण्डल के रचयिता वामदेव थे, इसमें कृषि सम्बन्धी प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है। पांचवे मण्डल की रचना अत्रि द्वारा किया गया था। छठे मण्डल की रचना भरद्वाज द्वारा की गयी थी।

सातवें मण्डल के रचयिता वशिष्ठ थे और इसमें दसराजन युद्ध का वर्णन किया गया था, जो परुष्णी (रावी) नदी के तट पर हुआ था। यह युद्ध पंच जन कबीले के शासक सुदास एवं त्रित्सु के बीच हुआ था। युद्ध का कारण वशिष्ठ एवं विश्वामित्र के बीच पुरोहित का पद था। ऋग्वेद में मन्त्रों का पाठ करने वाला पुरोहित ‘होतृ’ कहलाता था।

आठवें मण्डल की रचना कण्व ऋषि और अंगिरस ने किया था। नवें मण्डल की रचना पवमान अंगिरा ने किया था, इसमें सोम का उल्लेख किया गया है इसलिए इसे सोममण्डल भी कहा जाता है। दसवें मण्डल के रचयिता क्षुद्रसूक्तीय व महासूक्तीय ने किया था तथा इसी के एक भाग, पुरुष सूक्त में चतुर्वर्ण व्यवस्था की स्थापना की चर्चा मिलती है। इसी मण्डल में देवी सूक्त का उल्लेख है, जिसमे वाक् शक्ति की उपासना की गयी है। 

ऋग्वेद के ग्रन्थ

ऋग्वेद के ब्राह्मण ग्रन्थ ऐतरेय एवं कौषितकी हैं, उपनिषद् और आरण्यक भी यही हैं। आयुर्वेद को ऋग्वेद का उपवेद कहा जाता है, जिसमें चिकित्सा पद्धति का उल्लेख है। 

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